आठ साल में करोड़ों रूपये स्वाहा, कलेक्ट्रोरेट भवन का शुरू है रंगरोहन

कलेक्टोरेट भवन में आठ साल में करोड़ों रूपये स्वाहा |
सिंगरौली, वर्ष 2015- 16 में चिराग होटल से कलेक्ट्रेट दफ्तर में नवीन कलेक्ट्रोरेट भवन में शिफ्ट हुआ था। जहॉ शुरूआती दौर में ही कलेक्टर भवन की गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगना शुरू हो गया था और अब आठ साल में ही करोड़ों रूपये की लागत से वाल ग्रेनाइट टाइल्स को बदल दिया गया।
हालांकि बीच-बीच में दिवालों में लगी ग्रेनाइट टाइल्सें भरभराकर गिर भी पड़ी है।अब करीब आठ साल में ही इस कलेक्टर भवन का रंग रोहन शुरू करा दिया गया है | आठ साल में ही लाखों रूपये खर्च कर शुरू हुआ मरम्मत का कार्य कलेक्टोरेट भवन में आठ साल में करोड़ों रूपये स्वाहा |
गौरतलब हो कि सिंगरौली जिले का गठन 24 मई 2008 को हुआ था। जिला गठन के बाद कलेक्ट्रेट दफ्तर का संचालन माजनमोड़ स्थित पर्यटन विभाग के चिराग होटल में शुरू हुआ था। इसके बाद नवीन कलेक्ट्रोरेट भवन बनाने की अनुमति क्रियान्वयन एजेंसी लोक निर्माण विभाग को मिली। भवन निर्माण के शैशव काल में ही आरोप लग रहे थे कि संविदाकार गुणवत्ता विहीन कार्य कर रहा है।
इसकी कई बार शिकायतें भी हुई थी। किसी तरह कलेक्टोरेट भवन का कार्य पूर्ण हुआ और चिराग होटल से कलेक्टोरेट दफ्तर सरकारी नवीन भवन में शिफ़्ट भी हुआ। दफ्तर के शिफ्ट होने के कुछ महीने बाद ही दीवाल में लगी ग्रेनाइट टाइल्स भरभराकर गिरने लगी। उस दौरान तत्कालीन कलेक्टर शशांक मिश्रा ने क्रियान्वयन एजेंसी लोकनिर्माण विभाग पर नकेल कसते हुये भवन का मरम्मत कार्य कराया था
और उनके जाते ही दीवाले में लगी टाइल्से फिर से गिरने लगी। करीब आठ साल से कलेक्टोरेट दफ्तर उक्त भवन में संचालित है और करोड़ों रूपये की लागत से दीवालों में ग्रेनाइट टाइल्से भी लगायी थी। अब इन ग्रेनाइट टाइल्सों को कुछ महीने पहले हटाकर नये सिर से रंग -रोहन कराया जा रहा है।
अब सवाल उठ रहा है कि आखिरकार आठ साल के अन्दर ही सरकार के खजाने से करोड़ों रूपये की चपत लगाने वाले क्रियान्वयन एजेंसी एवं संविदाकार पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई क्यों सरकारी भवनों की लाइफ अल्प अवधि तय है।
इस तरह के सवाल कलेक्टोरेट में ही कुछ अधिकारी-कर्मचारी आपस में बैठक तरह-तरह की चर्चाएं करते हुये प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहे है। साथ ही यह भी सवाल उठा रहे हैं कि क्या कलेक्टरेट भवन के गुणवत्ता की जांच किसी तकनीकी बड़ी एजेंसी से करानी चाहियें। ताकि कोई बड़ा हादसा न हो। क्रियान्वयन एजेंसी पीडब्ल्यूडी ने ठीक ठाक से कार्य नहीं कराया है।
चार महीने से चल रहा मरम्मत का कार्य
जानकारी के मुताबिक कलेक्टोरेट भवन के अन्दर-बाहर के पुताई एवं मरम्मत का कार्य तकरीबन अगस्त महीने से चल रहा है। डिस्ट्रिक्ट मिनीरल फण्ड से कलेक्टोरेट भवन के निर्माण कार्य के लिये राशि की मंजूरी मिली थी जहॉ पीआईयू कियान्वयन एजेंसी है। कलेक्टोरेट भवन के दीवालों में पूर्व में लगे टाइल्स पत्थरों को हटाकर नये सिरे से दीवारों में प्लास्टर कराने का प्राकलन तैयार कराया गया था। जिससे भविष्य में वाल टाइल्स गिरने का खतरा न रहे।
वाल ग्रेनाइट के लिये हुआ था अतिरिक्त डिमांड
जानकारी के मुताबिक कलेेक्टे्रड भवन को सुन्दर एवं आकर्षक बनाने के लिये वाल ग्रेनाइट के लिये अतिरिक्त बजट मांगा गया था। जहॉ सूत्र बताते हैं कि लोक निर्माण विभाग के तत्कालीन कार्यपालन यंत्री ने कलेक्टर भवन के बाहर दीवालों में ग्रेनाइट लगाने के लिये करोड़ों रूपये का स्टीमेट तैयार कर शासन स्तर पर भेजा था और तत्कालीन कलेक्टर के प्रयास से मंजूरी भी मिल गयी थी।
जिस वक्त नवीन कलेक्ट्रेड भवन के बाहरी दीवालों में गे्रनाइट पत्थर लगाये जा रहे थे उसी सयम ही लोगबाग गुणवत्ता पर संशय जताया था और अनुमान सौ फीसदी सच निकला। करोड़ों रूपये पानी की तरह बह गया।