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डिप्रेशन के पेशेंट्स कुछ दशकों में ही बढे

लंदन। बीते कुछ दशकों में डिप्रेशन के शिकार पेशेंट्स काफी बढ़ गए हैं। मरीजों को डिप्रेशन से उबारने के लिए लगातार अध्ययन किया जा रहा हैं। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ वेटरन्स अफे़यर्स की स्टडी में कहा गया है कि फार्माकोजेनोमिक टेस्टिंग से एंटी-डिप्रेशन मेडिकेशन को अवॉइड किया जा सकता है।
बता दें कि एंडी-डिप्रेशन मेडिकेशन से मरीजों में कई बार अनचाहे नतीजे भी देखने को मिल जाते हैं।

फार्माकोजेनोमिक्स दवाइयों के प्रति हमारे जींस किस तरह प्रतिक्रिया दे रहे हैं इसकी स्टडी है।स्टडी के दौरान रिसर्चर्स ने ये भी पाया कि जिन मरीजों पर जेनेटिक टेस्टिंग की गई है उनके परिणाम, सामान्य केयर वाले मरीजों की तुलना में बेहतर मिले हैं। स्टडी के दौरान 24 हफ्तों तक मरीजों का इलाज किया गया, जेनेटिक टेस्टिंग वाले ग्रुप में 12 हफ्तों के बाद डिप्रेशन के लक्षणों में कमी नजर आई।स्टडी में शामिल सभी मरीजों को गंभीर डिप्रेसिव डिसऑर्डर था। इनमें अनिद्रा, भूख में कमी, उदासी और दु:ख का अनुभव होना और आत्महत्या करने जैसे विचार आने के लक्षण मौजूद थे।

इस स्टडी को लीड करने वाले मेंटल इलनेस, रिसर्च, एजुकेशन एवं क्लिनिक सेंटर के डायरेक्टर डॉ डेविड ऑस्लिन के अनुसार स्टडी के नतीजे सभी को फार्माकोजेनोमिक टेस्टिंग को लेकर प्रेरित करेंगे। मरीजों की अनुमति से किये जाने वाली इस टेस्टिंग से किस तरह का इलाज देना है इसका निर्णय लेने में भी मदद मिलेगी।डॉ. डेविड ऑस्लिन और उनकी टीम ने जींस की कमर्शियल बैटरी जो कि सीवायपी450 सिस्टम पर फोकस करती है का यूज किया। ये बैटरी 8 जीन्स को टेस्ट करती थी, इनमें से 6 टेस्ट लिवर के एंजाइम के वेरिएंट के लिए थे।

जींस का एंटी-डिप्रेशेंट्स से क्या लेना देना है? इस सवाल पर ऑस्लिन कहते हैं ‘हमने जिन जींस को टेस्ट किया वास्तव में उनका डिप्रेशन से ताल्लुक नहीं था। हमने शरीर में दवाई जाने के बाद व्यक्ति उसके कैसे मेटाबोलाइज करता है इसे रिलेट किया। इनमें से कुछ जींस ने मेडिकेशन को मेटाबोलाइज़ सामान्य की अपेक्षा तेजी से किया। वहीं दूसरी ओर दूसरे सामान्य की तुलना में धीमी गती से ड्रग्स को मेटाबोलाइज करते हैं, इसका सीधा मतलब है कि शरीर में ढेरा सारा मेडिकेशन होना।’

डॉ. डेविड ऑस्लिन कहते हैं कि इस स्टडी के दौरान सिग्निफिकेंट ड्रग-जीन इंटरेक्शन या मॉ़डरेट ड्रग जीन इंटरेक्शन को मेडिकेशन से दूर रखने में उल्लेखनीय बदलाव देखा गया। जेनेटिक टेस्टिंग ग्रुप के 26 प्रतिशत कंट्रोल ग्रुप के मुकाबले 59 प्रतिशत मरीजों को बिना किसी ड्रग-जीन इंटरेक्शन को प्रिडिक्ट किए बिना मेडिकेशन किया गया था। रिसर्चर्स के अनुसार डइस दौरान ‘सांख्यिकीय तौर पर महत्वपूर्ण और क्लीनिकली मीनिंगफुल’ अंतर पाया गया था। बता दें कि तेजी से बदल रही लाइफस्टाइल और गलाकाट प्रतिस्पर्धा ने लोगों को तेजी से डिप्रेशन का मरीज बनाया है।

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