भारत के लिए ओलंपिक खेलों की मेजबानी आसान नहीं
नई दिल्ली। भारत साल 2036 में ओलंपिक मेजबानी करना चाहता है पर ये इतना आसान नहीं है। ओलंपिक में दुनिया भर के खिलाड़ी भाग लेते है। ऐसे में इसके आयोजन और इंतजामों पर हजारों करोड़ रुपये का खर्च आता है हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन और खेल मंत्री मनसुख मंडाविया की देखरेख में एक कमेटी ओलंपिक आयोजन के सपने को पूरा करने की तैयारियां कर रही है।
अगर सब कुछ ठीक रहा, तो भारत 2036 ओलंपिक मेजबानी हासिल करने के लिए दावेदारी पेश करेगा। वहीं एक रिपोर्ट के अनुसार, पेरिस ओलंपिक 2024 की मेजबानी पर 10 बिलियन डॉलर (करीब 83,000 करोड़ रुपये) का खर्च आने की उम्मीद है। हालांकि यह बस अनुमान है। दरअसल, ओलंपिक खेलों में स्टेडियम और खेल सुविधाओं के विकास के साथ पर्यटन, सुरक्षा सहित अन्य सुविधाओं के विस्तार पर मोटा खर्च आता है। ऐसे में छोटे देशों के लिए इसकी मेजबानी करना संभव नहीं होता है।
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वहीं अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अनुसार, खेलों की मेजबानी से अधिक नौकरियां पैदा होती हैं। मेजबान देश में पर्यटन को बढ़ावा मिलता है और शहर को आर्थिक लाभ मिलता है। कम से कम 1960 के बाद से हर ओलंपिक मेजबान ने योजना से ज़्यादा खर्च किया है।
हर ओलंपिक खेलों का कैलेंडर लगभग सात साल पहले तय किया जाता है, चाहे उस समय की आर्थिक स्थिति कैसी भी हो। हालांकि, कुल खर्च और कमाई के बारे में पारदर्शिता बहुत कम है।
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एक रिपोर्ट के अनुसार, लंदन ओलंपिक 2012 पर 16.8 बिलियन डॉलर (89,000 करोड़), रियो ओलंपिक 2016 पर 23.6 बिलियन डॉलर (1.55 लाख करोड़) और टोक्यो ओलंपिक 2020 पर 13.7 बिलियन डॉलर (1.04 लाख करोड़ रुपये) खर्च हुए थे। इन आंकड़ों को देखकर ये साफ है कि जिस देश को भी ओलंपिक की मेजबानी करनी होगी उसे एक मोटी रकम खर्च करनी होगी। इसलिए भारत को मेजबानी करनी है, तो एक मोटी रकम जोड़नी होगी।
सामाजिक आर्थिक सशक्तिकरण को ध्यान में रखते हुए भारत ओलंपिक की मेजबानी के लिए एक मजबूत दावेदार है। लेकिन भारत के सामने कई चुनौतियां होंगी और एक मजबूत रणनीति तैयार करनी होगी।