उत्तर प्रदेश

एजेंडे में मुस्लिम भाजपा के

लखनऊ। उत्तर प्रदेश सदा से ही देश की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है। यहां से ही दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने का रास्ता निकलता है। सभी राजनीतिक दल इस बात को अच्छी तरह जानते हैं और इसी कारण वे उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने हरसंभव प्रयास करते हैं। भाजपा ने उत्तर प्रदेश को साधा जिससे वह दिल्ली की सत्ता को दो बार मजबूती के साथ हासिल करने में कामयाब रही तो तीसरी बार भी डग-मगाते हुए सत्ता में काबिज हो गई।

लोकसभा परिणामों को देखते हुए अब भाजपा मुस्लिम मतदाताओं को लेकर अपना एजेंडा बदलने के प्रयास में लग रही है। यही वजह है कि पार्टी सदस्यता अभियान के तहत 5 लाख मुस्लिमों को सदस्य बनाने और संगठन से जोड़ने की योजना पर काम कर रही है। यह अलग बात है कि भाजपा के लिबरल होने से देश के कट्टर हिंदू संगठन व नेता को आघात लगा है।

अब इसकी प्रतिक्रिया किस रुप में वो देंगे यह देखने वाली बात होगी। – लोकसभा चुनावों से सबक लोकसभा चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस को भाजपा के वोट बैंक में सेंधमारी का फायदा मिला था। यह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लिए चिंता का विषय बना। इसे ध्यान में रखते हुए भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने कई दौर की बैठकें कीं और इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास किया है।

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– भाजपा के होंगे मुस्लिम वोटर भाजपा अब अपने सदस्यता अभियान के तहत 2 करोड़ नए सदस्यों को जोड़ने की योजना पर काम कर रही है। इस पर खास बात यह है कि भाजपा 5 लाख मुस्लिम सदस्यों को पार्टी का हिस्सा बनाने जैसी अहम योजना पर काम करती दिख रही है। इसके तहत ही 18 सितंबर से उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों, खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा अपने सदस्यता अभियान को तेज करने जा रही है।

इसके तहत मुस्लिम कार्यकर्ताओं को भाजपा के कार्यक्रमों में न सिर्फ शामिल किया जाएगा, बल्कि उन्हें सक्रिय रहने जिम्मेदारी दी जाएगी। इससे पार्टी वोटबैंक मजबूत होने की उम्मीद जताई गई है। – विपक्ष के वोटबैंक में सेंध अब तक भाजपा राष्ट्रवाद और हिंदू एजेंडे पर ही केंद्रित राजनीति करती आई थी, लेकिन अब पार्टी ने मुस्लिम समुदाय को भी अपने साथ जोड़ने की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है। भाजपा में मुस्लिम चेहरों को प्रमुख स्थान देने की रणनीति पर भी काम किया जा रहा है।

समझा जा रहा है इससे विपक्ष के वोटबैंक में सेंध लगाई जा सकेगी, लेकिन दूसरी तरफ कट्टर हिंदू हैं, जो पार्टी के इस रुख से खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। उनकी नाराजगी क्या गुल खिलाएगी यह देखने वाली बात होगी। – कट्टर हिंदू छवि से बाहर निकलने की कोशिश आरएसएस के एक पदाधिकारी ने स्पष्ट किया है, कि इस कदम का उद्देश्य भाजपा की कट्टर हिंदूवादी छवि से बाहर निकलना है।

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साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के नारे को जमीनी स्तर पर साकार करने की कोशिश की जा रही है। – भविष्य की राजनीति पर पड़ेगा असर भाजपा का उदारवादी चेहरा और मुस्लिम समुदाय को साथ लेने की योजना भविष्य की राजनीति को प्रभावित करेगा।

यह कदम भाजपा की राजनीतिक दिशा और रणनीति में एक बड़ा बदलाव हो सकता है, जो विपक्ष के पारंपरिक वोटबैंक पर गहरा असर भी डालने वाला साबित हो सकता है। अब देखने वाली बात यह है कि भाजपा की यह योजना कितनी सफल हो पाती है, और क्या यह रणनीति विपक्ष की सियासी जमीन को हिलाने में कामयाब रहेगी। यह सब तो भविष्य ही तय करेगा, लेकिन यह तय है कि भाजपा की इस चाल से खुद उसके कट्टरवादी नेता और कार्यकर्ता खासे नाराज चल रहे हैं, जिन्हें रास्ते पर लाना भी किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

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