तत्कालीन कलेक्टर के निर्देश का नहीं दिख रहा असर,छोटे-छोटे कामों के लिए पटवारियों की तलाश में भटकते हैं ग्रामीण…
तत्कालीन कलेक्टर के निर्देश का नहीं दिख रहा असर,छोटे-छोटे कामों के लिए पटवारियों की तलाश में भटकते हैं ग्रामीण…
सीधी:- जिले में हल्का पटवारियों की तलाश में ग्रामीणों को अक्सर भटकते हुए देखा जाता है। हल्का पटवारी अपने क्षेत्र में नियमित रूप से रहने की वजाय जिला मुख्यालय या तहसील मुख्यालय में डेरा जमाए रहते हैं। अधिकांश पटवारी अपने गृह क्षेत्र के आसपास ही पदस्थ हैं इस वजह से वह अपने घरेलू कार्य में ज्यादा व्यस्त दिखते हैं।
लोगों की उक्त समस्या को देखते हुए तत्कालीन कलेक्टर मुजीबुर्रहमान खान द्वारा आदेश जारी कर निर्देशित किया गया था कि हल्का पटवारी नियमित रूप से सप्ताह के दो दिन ग्राम पंचायत में बैठें। यदि किसी पटवारी के पास दो हल्का का प्रभार है तो वे सप्ताह में एक-एक दिन दोनों ग्राम पंचायतों में बैठकर ग्रामीणों की समस्याओं का सार्थक निदान सुनिश्चित कराएं। बिडम्बना यह है कि तहसीलदारों द्वारा इसके लिए कोई आदेश हल्का पटवारियों को अपने स्तर से नहीं दिए गए। लिहाजा हल्का पटवारी ग्राम पंचायतों में बैठने से पूरी तरह से दूरी बनाए हुए हैं। वह ग्राम पंचायतों में आदेश जारी होने के बाद से ही कभी भी निर्धारित दिवस को बैठने की जरूरत नहीं समझे। चर्चा के दौरान तहसील क्षेत्रों के कुछ ग्रामीणों ने बताया कि हल्का पटवारियों से काम पडऩे पर उनकी तलाश में पूर्व की तरह ही अब भी भटकना पड़ रहा है।
सिर्फ कागजों में सीमित रहा है यह आदेश
तत्कालीन कलेक्टर का उक्त आदेश समाचार पत्रों में अवश्य पढऩे के लिए मिला था लेकिन तहसील स्तर से हल्का पटवारियों को अपने क्षेत्र में दो दिवस बैठने के लिए कोई आदेश नहीं दिया गया। जिसके चलते हल्का पटवारियों द्वारा अपने क्षेत्र में ग्राम पंचायतों में बैठने के लिए दो खास दिवसों का निर्धारण भी नहीं किया गया है। हल्का पटवारियों के यदि सप्ताह के दो दिन ग्राम पंचायतों में बैठने का निर्धारण सुनिश्चित करा दिया जाय तो ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश लोगों की राजस्व संबंधी समस्याओं का निराकरण बिना किसी भटकाव के हो सकता है।
अभी देखा जा रहा है कि हल्का पटवारी आरआई आफिस या तहसील कार्यालय का चक्कर लगाकर गायब हो जाते हैं। कई पटवारी तो ऐसे भी हैं जो कि नियमित रूप से तहसील एवं आरआई कार्यालय में नहीं आते। ऐसे में हल्का पटवारियों की तलाश में ग्रामीणों को कई दिनों तक भटकना पड़ता है। यदि मुलाकात हुई भी तो उनके द्वारा कई तरह की बहानेबाजी करके ग्रामीणों को लगातार चक्कर कटवाया जाता है।