सीधी

स्टाम्प बेंडर्स की मनमानी लूट पर अंकुश नहीं,मनमानी शुल्क वसूली से परेशान रहते हैं स्टाम्प खरीदने वाले हैं…

स्टाम्प बेंडर्स की मनमानी लूट पर अंकुश नहीं,मनमानी शुल्क वसूली से परेशान रहते हैं स्टाम्प खरीदने वाले हैं…

 

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कोर्ट कचहरी सहित अन्य मामलों को लेकर स्टांप की जरूरत हमेशा लोगों को पड़ती है परंतु अफसोस रहा है कि कलेक्ट्रेट एवं जिला न्यायालय परिसर में स्टांप पेपर बेचने वालों द्वारा मनमानी दर पर सदैव से इसकी बिक्री की जाती है जिस पर कभी भी ठोस कार्रवाई प्रशासन द्वारा बेंडर्स के खिलाफ नहीं होती है।
अक्सर देखने को मिलता है कि स्टाम्प की कीमत को लेकर ग्राहक और बेंडर्स के बीच विवाद की स्थिति भी निर्मित होती रहती है। ऐसे में कई बार बेंडर संबंधित ग्राहक को स्टाम्प देने से मना कर देते हैं। जिसकी शिकायत भी विभाग से होती है लेकिन कार्यवाही न हो पाने के कारण बेंडरो की मनमानी बनी रहती है।
कलेक्ट्रेट स्थित रजिस्ट्री कार्यालय सहित तहसील मुख्यालयों में भी इसी तरह की मनमानी हो रही है।
बताया गया है कि ग्राहकों द्वारा जब तय कीमत से ज्यादा मूल्य नहीं देते हैं तो बेंडर और ग्राहक के बीच कहासुनी होने लगती है। इतना ही नहीं स्टांप वेंडर जानबूझकर स्टांप की शार्टेज बताकर अधिक कीमत पर उसे बेचने का प्रयास करते हैं। वैसे स्टाम्प बेंडर्स को अपनी दुकान स्थल पर मूल्य स्टाक सूची लगानी चाहिए जिसमें स्टांप की कीमत लिखी होनी चाहिए। साथ ही विभागीय स्तर पर इसकी निगरानी की जानी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
विभाग की यह जिम्मेदारी है कि वे तय जगहों पर बिकने वाले स्टांप वेंडरों की जांच करें। वो ये देखें कि स्टांप वेंडर नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं ? पर ये देख-रेख शायद ही कभी होता हो। जिले में सभी स्टांप वेंडर खुलेआम हर स्टाम्प पेपर की तय कीमत से कहीं ज्यादा कीमत ग्राहक से वसूल रहे हैं। जिले के सभी तहसील कार्यालयों में भी ज्यादा कीमत पर स्टांप बिक रहा है। इस मामले में राजस्व अधिकारियों से अक्सर शिकायत होती रहती है लेकिन कार्रवाई नहीं होती है। इससे नियम तोडऩे वाले स्टांप बेंडर्स का हौसला बुलंद हैंं।

ई-स्टांप की भी है व्यवस्था

अब तो शासन ने स्टांप की कालाबाजारी रोकने आम लोगों के लिए ई-स्टांप की व्यवस्था की है। मैनुअली स्टांप पेपर खरीदने में शासन और खरीदने वाले दोनों को ही घाटा है। शासन को भी छपाई और कागज से राजस्व का नुकसान होता है। मैनुअली व ई-स्टांप में अंतर यह है कि जहां एक लाख की रजिस्ट्री में 25-25 हजार के चार स्टांप पेपर लगेंगे, वहीं ई-स्टांप में सिर्फ एक लाख का एक ही स्टांप पेपर लगता है। इससे प्रॉपर्टी खरीदी में लोगों को राहत मिली है किन्तु दूसरे कामों में लगने वाले स्टाम्प में अक्सर लोग लुट रहे हैं।

चुनाव के चलते धीमी रही रजिस्ट्री की गति

 

कलेक्ट्रेट स्थित उप पंजीयक कार्यालय में लायसेंस प्राप्त बेंडर स्टाम्प की बिक्री मनमानी तरीके से ही करते हैं। जिससे ग्राहक को ज्यादा कीमत देनी पड़ती है। वैसे यदि साधारण शपथ पत्र आदि के लिए स्टाम्प की खरीदी करने बेंडरों के पास आम आदमी पहुंचता है तो उसे पहला जवाब तो यही मिलता है कि 10 रूपये का स्टाम्प उपलब्ध ही नहीं है। जब वो चल देता है तब वेंडर द्वारा यह कहा जाता है कि कुछ पुराने स्टाम्प मेरे पास पड़े हैं यदि 15 रूपये की दर से भुगतान करें तो 10 रूपये वाले स्टाम्प उपलब्ध हो जाएंगे। स्टाम्प विक्रेताओं को कोषालय से बिक्री के लिए अलग-अलग कीमत वाले स्टाम्प उपलब्ध कराये जाते हैं। जिनका रिकार्ड भी कोषालय में उपलब्ध रहता है। तब आम लोगों से बढ़ी दरों पर स्टाम्पों की बिक्री का न तो निरीक्षण किया जाता न ही इनके द्वारा अतिरिक्त कमाई जा रही राशि पर लगाम ही लगाया जाता है।
जिला प्रशासन का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराते हुए स्टांप की बिक्री को लेकर जारी कालाबाजारी पर अंकुश लगाने की मांग की गई है।

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  • सुनील सोनी , " पोल खोल पोस्ट " डिजिटल न्यूज़ पोर्टल के प्रधान संपादक और संस्थापक सदस्य हैं। उन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में कई वर्षों का अनुभव है और वे निष्पक्ष एवं जनसेवा भाव से समाचार प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं।

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सुनील सोनी , " पोल खोल पोस्ट " डिजिटल न्यूज़ पोर्टल के प्रधान संपादक और संस्थापक सदस्य हैं। उन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में कई वर्षों का अनुभव है और वे निष्पक्ष एवं जनसेवा भाव से समाचार प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं।

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