नई राजनीति की प्रयोगशाला बिहार को अब प्रशांत किशोर बनाना चाहते हैं
नई दिल्ली। बिहार बदलाव का मंच बनता जा रहा है। देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी ने बिहार के चंपारण की धरती को ही चुना, जिसकी गूंज कुछ ही दिनों में देश भर में होने लगी। व्यवस्था परिवर्तन के आह्वान के साथ जय प्रकाश नारायण ने बिहार से 1974 में शंखनाद किया। परिणाम सबको पता है। 1977 में आजादी के वक्त से ही देश की सत्ता में सिरमौर बने नेहरू परिवार की बेटी इंदिरा गांधी का लोकसभा चुनाव में सफाया हो गया था।
ये तो पुरानी बातें हो गईं। प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के संबंध में इसे अभी परखा जाना है। बिहार में सभी अच्छे कामों की ही शुरुआत हुई हो, ऐसा नहीं है। देश की राजनीति में हलचल मचाने वाली कास्ट पॉलिटिक्स की भी जननी बिहार ही है। पीएम रहते विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जब पिछड़े वर्ग के आरक्षण के लिए बीपी मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कीं तो इसका सबसे अधिक प्रभाव बिहार में ही पड़ा।
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सामाजिक तौर पर मार-काट तो मची ही, राजनीति की धारा भी बदल गई। जातिवादी धारा की राजनीति शुरू हुई। नई राजनीति के ध्वजवाहक बने लालू प्रसाद यादव। इसका लाभ भी उन्हें मिला और लगातार 15 साल बिहार की कमान उनके और उनकी पत्नी के हाथ रही। यह धारा अब भी बरकरार है, जिसे ध्वस्त कर नई धारा की राजनीति शुरू करने का श्रीगणेश किया है प्रशांत किशोर ने। अब सवाल यही है कि क्या प्रशांत किशोर बिहार को राजनीति की प्रयोगशाला बनाने जा रहे हैं।