सीधी

तुर्रानाथ मंदिर मामले पर वन रक्षक ने चौकीदार को ही बना दिया गवाह,हुआ निलंबित।

तुर्रानाथ मंदिर मामले पर वन रक्षक ने चौकीदार को ही बना दिया गवाह,हुआ निलंबित।

अमित श्रीवास्तव पोल खोल

सीधी जिले का वन विभाग लगातार भ्रष्टाचार का परिचायक बनता हुआ नजर आ रहा है सिर्फ कोरम पूर्ति करके कार्य भी कर रहा है मामला सीधी जिले के आदिवासी क्षेत्र का वह मामला जो पूरे प्रदेश में इन दिनों गरमाया हुआ है। जहां मंदिर ही चोरी कर ली गई थी जिसके बाद वन विभाग और पुलिस प्रशासन विभाग में खींचतान मची हुई है।

दोनों विभाग अपना श्रेय लेने के लिए लगातार किसी भी व्यक्ति को आरोपी बना देते हैं और किसी भी व्यक्ति को गवाह बना देते हैं अब इनमें से सही कौन है और कौन सा विभाग सही कार्य कर रहा है इस बात की जानकारी ही नहीं है।

 

हैरानी तो तब हुई जब वन विभाग ने कार्यवाही की और कार्यवाही करने के बाद पी ओ आर काटा और उन्हें कोई गवाह नहीं मिला तो अपने ही फायर बाचर और चौकीदार को गवाह बना दिया। जहां आपको बता दे कि रोहित लाल केवट और तेजभान सिँह फॉरेस्ट के चौकीदार हैं। इन दोनों को वन विभाग के अधिकारियों ने गवाह बना दिया जबकि सही जानकारी यह है कि उसे समय पर यह दोनों लोग मौजूद नहीं थे और ना ही इन दोनों लोगों ने कुछ देखा है। वन विभाग के कर्मचारी ना तो गांव में गए और ना ही गांव वालों से पूछने की वह जरूरत समझते हैं।

 

सड़ गया है वन विभाग का मुखबिर तंत्र

हर विभाग का एक अपना मुखबिर तंत्र होता है जिसके माध्यम से उसकी जानकारी उसे समय पर मिल जाती है। लेकिन वन विभाग सीधी का मुखबिर तंत्र सड़ गया है वह कोई काम लायक अब नहीं रह गया है। यह पूरा मामला 21 सितंबर का है लेकिन फिर भी वन विभाग को इसकी भनक तक नहीं लगी है। 3 अक्टूबर को नवरात्रि के पहले दिन जब मीडिया कर्मी ने इसे प्रमुखता से अपने चैनल में दिखाया था जिसके बाद पहले मौके पर पुलिस प्रशासन पहुंचा लेकिन आनंद-खनन में वन विभाग ने पी ओ आर 3 अक्टूबर को ही काट दिया। लेकिन उसमें यह दिखाया गया है कि मुखबिर से मिली जानकारी के अनुसार उन्होंने यह कार्य किया है।

 

सवाल उठता है कि अगर वन विभाग का मुखबिर तंत्र मजबूत होता तो 21 तारीख की घटना को 3 अक्टूबर को कैसे मुखबिर के माध्यम से जान पाते। वन विभाग के रेंजर की तानाशाही लगातार चल रही है वह सिर्फ अपने मन मुताबिक कार्य करते हैं जहां उनके मुख्य तंत्र फेल हो चुके हैं और कार्यवाही के नाम पर वह सिर्फ कोरम पूर्ति कर रहे हैं. आप तो यहां तक लगाए गए हैं कि वह पैसे लेने के चक्कर में यह सब कार्य आनन फानन में कर रहे हैं।

 

पी ओ आर काटने वाले को ही कर दिया निलंबित

रेंजर की तानाशाही यही नहीं रुकी बल्कि एक और बड़ी घटना निकलकर सामने आ गई जहां पर पी ओ आर काटने वाले वनरक्षक दयाराम प्रजापति को ही निलंबित कर दिया। ना तो उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया और ना ही किसी भी प्रकार का कोई भी दस्तावेज उनसे मांगा गया बल्कि तत्काल ही यह घटना 3 अक्टूबर को घटना के बाद उन्हें निलंबित कर दिया।

जिसका नाम नहीं उसे भी कर दिया निलंबित

सबसे बड़ा मामला तो तब आया जब डीप्टी रेंजर आर एन शुक्ला को निलंबित कर दिया गया। बताया जा रहा है कि 27फरवरी से 30जून तक वह अवकाश मे थे इसके बाद भी वनकर्मी कुन्नूलाल के द्वारा सील परिक्षेत्र अधिकारी सहायक का लगाकर सभी काम 29 सितम्बर तक वह किया था। सारे रिकार्ड मे उनके हस्ताक्षर मिलेगे ऐसा सूत्रो का दावा है ,क्युकी वो उस समय वहा मौजूद नहीं थे। जब वह कर्मचारी वहा मौजूद नहीं थे, जब काम ही नहीं किए तो उन्हें निलंबित क्यू किया गया यह चर्चा का विषय बना हुआ है।

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