बिजली गिरने की घटनाओं में हो रहा इजाफा जलवायु परिवर्तन से
नई दिल्ली। किताबों और हिंदी फिल्मों में बिजली गिरने का रोमांटिकरण किया जाता है और इसका इस्तेमाल प्यार का वर्णन करने के लिए भी किया जाता है। लेकिन वास्तविक जीवन में, बिजली गिरना घातक होता जा रहा है। भारत में हर साल मध्य और पूर्व में बिजली गिरने से हजारों लोग की मौत हो जाती है।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक भारत में बाढ़, भूकंप, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाली 8,060 आकस्मिक मौतों में से करीब 36 फीसदी या 2,886 मौतें 2022 में बिजली गिरने के कारण हुईं थी जो 1967 में 1,165 थी। लाइटनिंग रेजिलिएंट इंडिया कैंपेन के पूर्व वैज्ञानिक का कहना है कि जलवायु परिवर्तन बिजली गिरने की घटनाओं का कारण है क्योंकि गर्मी और गरज दो बुनियादी तत्व हैं।
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यह वनों की कटाई, जल निकायों में कमी, शहरीकरण, प्रदूषण के कारण एरोसोल के स्तर में बढ़ोतरी, बड़े पैमाने पर खनन, औद्योगीकरण सहित अन्य कारकों से बढ़ता है। दो दशकों में बिजली गिरने से होने वाली मौतों के पता चलता है कि उनके दोपहर में होने की संभावना ज्यादा होती है। करीब 88फीसदी मौतें मध्य प्रदेश, यूपी, बिहार और ओडिशा सतेत सात राज्यों से दर्ज की गई हैं। इसका कारण बिजली गिरने की आवृत्ति और जनसंख्या घनत्व है साथ ही बिजली गिरने का शिकार होने वाले लोग ग्रामीण आबादी से हैं, जिनमें ज्यादातर किसान, मवेशी चराने वाले हैं।
जनसंख्या घनत्व के अलावा, शोध से पता चलता है कि स्थलाकृति कुछ क्षेत्रों को बिजली गिरने के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाती है। उदाहरण के लिए, झारखंड, बंगाल की खाड़ी के करीब स्थित है और छोटा नागपुर पठार में स्थित है, जहां ऊंची-नीची भूमि है, जबकि ओडिशा में खनन और औद्योगीकरण का असर बिजली गिरने की घटनाओं में वृद्धि पर पड़ सकता है। यह मौसम परिवर्तनशीलता बनाने में अहम भूमिका निभाता है।
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मध्य प्रदेश में, इस साल जुलाई में बिजली गिरने से करीब 80 लोगों की मौत हुई है, वहां भीषण गर्मी के बाद भारी बारिश होती है जिसके कारण अक्सर बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं। मौसम विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर भीषण गर्मी के कारण जमीन ज्यादा गर्म होती है, और मानसूनी बारिश तपती धरती के संपर्क में आती है। ऐसे में आधे घंटे से तीन घंटे के अंदर बिजली गिरना शुरू हो जाती है। भारतीय मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक रमेश का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग का बिजली गिरने की घटनाओं पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह बारिश लाने वाली प्रणालियों को प्रभावित करता है। अगस्त और सितंबर में बिजली ज्यादा गिरती है क्योंकि ये भारी बारिश के महीने होते हैं।