दिल्ली

पैरेंट्स आखिर किसे और क्यों चुनें? सरकारी और प्राइवेट स्कूल में से

नई दिल्ली। भारत में शिक्षा जगत में तेजी से बदलाव आ रहा है। इस बदलाव का असर सबसे पहले स्कूल शिक्षा पर ही पड़ता है। इसमें मुख्य रूप से दो प्रकार के स्कूल सामने आते हैं—सरकारी और प्राइवेट। दोनों के बीच अंतर को समझना पैरेंट्स के लिए बच्चों के भविष्य को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय होता है। सरकारी स्कूलों की लोकप्रियता उनके नि:शुल्क या कम शुल्क में शिक्षा देने के कारण है, जबकि प्राइवेट स्कूल कथित तौर पर उच्च गुणवत्ता की शिक्षा और बेहतर सुविधाओं के लिए पहचाने जाते हैं। भारत में शिक्षा प्रणाली को राज्य और केंद्रीय बोर्डों के आधार पर बांटा गया है।

सरकारी स्कूल मुख्य रूप से राज्य बोर्ड से जुड़े होते हैं, जबकि नवोदय विद्यालय, केंद्रीय विद्यालय और आर्मी स्कूल जैसे संस्थान सीबीएसई से संबद्ध होते हैं। इनमें प्रवेश पाना प्राइवेट स्कूलों जितना ही कठिन होता है, और ये स्कूल उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा के मामले में प्राइवेट स्कूलों को टक्कर देते हैं। शिक्षा की गुणवत्ता के मामले में, प्राइवेट स्कूलों को उच्च दर्जा दिया जाता है।

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वहां बच्चों को उच्च शिक्षित और अनुभवी शिक्षक पढ़ाते हैं, और शिक्षा के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की अतिरिक्त गतिविधियों पर जोर दिया जाता है। वहीं सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया कठिन होती है, लेकिन कई जगहों पर शिक्षा की गुणवत्ता प्राइवेट स्कूलों से कम हो सकती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। प्राइवेट स्कूलों की फीस अक्सर बहुत अधिक होती है, जिससे वे हर किसी के लिए सुलभ नहीं होते। दूसरी ओर, सरकारी स्कूल लगभग नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करते हैं।

कुछ सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी हो सकती है, जैसे कंप्यूटर लैब या खेल के मैदान, जबकि प्राइवेट स्कूल अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होते हैं, जिसमें स्मार्ट क्लासरूम, खेल की गतिविधियाँ और वैज्ञानिक प्रयोगशालाएँ शामिल हैं। अनुशासन के मामले में प्राइवेट स्कूल अधिक सख्त होते हैं, और समय की पाबंदी पर जोर देते हैं। वहीं, सरकारी स्कूलों में छात्रों और शिक्षकों की अनुपस्थिति की समस्या आम है, खासकर दूरदराज के इलाकों में। हालांकि, शहरी इलाकों में स्थिति बेहतर है।

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क्लास के साथ छात्र और शिक्षक का अनुपात भी एक बड़ा अंतर पैदा करता है। प्राइवेट स्कूलों में यह अनुपात कम होता है, जिससे हर छात्र पर व्यक्तिगत ध्यान दिया जा सकता है। इसके विपरीत, सरकारी स्कूलों में यह अनुपात अधिक होता है, जिससे शिक्षकों के लिए सभी छात्रों को समान रूप से ध्यान देना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। अंततः यह निर्णय पूरी तरह से माता-पिता की प्राथमिकताओं और बजट पर निर्भर करता है।

यदि वे बेहतर शिक्षा और सुविधाओं के लिए अधिक पैसे खर्च कर सकते हैं, तो प्राइवेट स्कूल एक अच्छा विकल्प हो सकता है। वहीं, यदि बच्चे की शिक्षा के लिए सीमित संसाधन हैं, तो सरकारी स्कूल भी एक अच्छा विकल्प होता है, खासकर यदि यह शीर्ष सरकारी स्कूलों में से एक हो। सरकारी स्कूलों की पढ़ाई को कम करके आंका नहीं जा सकता है, इसके अनेक उदाहरण मौजूद हैं।

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