सीधी

जिले भर के आदिवासी छात्रावासों की हालत सिर्फ काम चलाऊ,सुविधा शुल्क लेकर अधीक्षक की होती है नियुक्ति।

छात्रावासों की तस्वीर सुधारने को लेकर विभाग गंभीर नहीं 
जिले भर के आदिवासी छात्रावासों की हालत सिर्फ काम चलाऊ,सुविधा शुल्क लेकर अधीक्षक की होती है नियुक्ति।
सीधी
सीधी जिला एक आदिवासी बाहुल्य जिला है इस कारण से यहां भारी संख्या में आदिवासी छात्रावास जिले भर में अलग से बनाए गए हैं। पर जिले में ट्रायवल के छात्रावासों की हालत कभी ठीक नहीं रही है। यहां पर संचालित एक सैकड़ा से अधिक छात्रावासों में छात्र-छात्राएं सुविधा संसाधन के लिए तरस रहे हैं।
कहने को तो पूरे जिले में कुल 114 छात्रावास चल रहे हैं किन्तु सुविधा संसाधनों के नाम पर इन हॉस्टलों में छात्र-छात्राओं को ठगा जाता है।
सीधी ब्लाक के अलावा रामपुर नैकिन, कुसमी, मझौली व सिहावल में चल रहे बालक-बालिका छात्रावासों में सुविधाओं का अभाव है। सूत्रों की मानें तो छात्रावासों में फर्जी छात्र संख्या दर्ज कर राशि हड़पने का सिलसिला अभी भी चल रहा है। इस पूरे खेल में छात्रावासों के अधीक्षकों के अलावा ट्रायवल विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत है। कई बार छात्रावासों से जुड़ी शिकायतें भी हुई हैं किन्तु ठोस कार्यवाही न होने से नतीजा सिफर रहा है।
दरअसल छात्र-छात्राओं को खाने-पीने की सुविधा के साथ अन्य संसाधन जुटाने के लिए जो राशि शासन मुहैया कराई जाती है उसमें बंदरबांट चल रहा है।
गौरतलब है कि जिले में जनजातीय कार्य विभाग अंतर्गत अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिए आवासीय छात्रावास की सुविधा मुहैया कराई गई है।
एक जानकारी के मुताबिक पूरे जिले में इस प्रकार के कुल 114 छात्रावास संचालित हैं। जहां सुविधा व संसाधन मुहैया कराने के वजाय ट्रायवल विभाग के अधिकारी व छात्रावास के अधीक्षक अपनी जेब भरने में लगे हैं।
सूत्रों के मुताबिक दो साल कोरोना काल के बाद छात्रावासों की हालत वर्तमान में बद से बद्तर है। बताया गया है कि शासन से जो राशि इन छात्रावासों में छात्रों की सुविधा व संसाधन के लिए आती है वो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है।
अधीक्षक बनने लगती है बोली
ट्रायवल विभाग के अंतर्गत संचालित छात्रावास में अधीक्षक बनने के लिए बोली लगती है। विभाग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक बालिका व बालक छात्रावासों में कुल 114 अधीक्षक कार्यरत हैं। इनमें से अधिकांश अधीक्षक विभाग के अधिकारियों से सांठगांठ कर जमकर आर्थिक अनियमितताओं में लिप्त हैं। अधीक्षक बनने के लिए स्कूल के शिक्षक पहले विभाग का चक्कर लगाते हैं उसके बाद अधिकारियों से सांठगांठ कर छात्रावास अधीक्षक बन जाते हैं।
छात्रावासों में बिजली, पानी का संकट
जिले में संचालित अधिकांश छात्रावासों में बिजली, पानी का संकट है। इस संबंध में कई बार छात्रों ने जिला प्रशासन से शिकायत भी की किन्तु कोई नतीजा नहीं निकला। बताया गया है कि बिजली, पानी के अलावा छात्रों के विस्तरों की व्यवस्था में भी कोई सुधार नहीं है। इनके नाम पर जो बजट आता है वो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है।
सूत्रों की मानें तो निरीक्षण के दौरान कई बार छात्रावासों में व्याप्त अव्यवस्थाएं सामने आई हैं किन्तु कार्यवाही न होने से हॉस्टल सुविधा विहीन चल रहे हैं।
फर्जी उपस्थिति का खेल
जिले के अनुसूचित जाति व जनजाति छात्रावासों में फर्जी तौर पर छात्रों की उपस्थिति दर्शाकर राशि में बंदरबांट किया जा रहा है। यह खेल जिले में संचालित अधिकांश छात्रावासों में चल रहा है। एक जानकारी के मुताबिक कुसमी विकासखंड में कुल 33 हॉस्टल संचालित हैं। इनके अलावा मझौली में 16, सिहावल में 10, रामपुर नैकिन में 18 व सर्वाधिक सीधी ब्लाक में 36 हॉस्टल चल रहे हैं।
बताया गया है कि रजिस्टर में छात्रों की रोजाना शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्शाकर शासकीय राशि के हड़पने का खेल जोरों से चल रहा है।
प्रभारी सहायक आयुक्त की कार्य प्रणाली पर सवाल
मामले में जानकारी सामने आई कि आदिवासी विभाग में जबसे सहायक आयुक्त डीके द्विवेदी पदस्थ हुए हैं तब से उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं। नई सरकार के गठन के बाद उम्मीद की जा रही है कि इस पर रोक लग सकती है। देखा जाय तो हर जगह सहायक आयुक्त की मनमर्जी के कारण अधीक्षकों द्वारा अंधेरगर्दी एवं छात्रों हक पर भी डाका डालकर कमीशन खोरी किया जा रहा है। उनके हक में आने वाली भोजन में भी कटौती करने का सिलसिला लगभग कई छात्रावासों में सुनने को मिल रहा है।

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