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गली-चौराहों में धधक रहा एलपीजी बम, सुरक्षा के मानक ताक पर…

गली-चौराहों में धधक रहा एलपीजी बम, सुरक्षा के मानक ताक पर…

सुरक्षा के संसाधनों के बिना कभी भी बन सकती है आफत, जिला प्रशासन के अधिकारी नहीं दे रहे ध्यान…

सीधी:- जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में गली चौराहों और सार्वजनिक स्थानों पर धड़ल्ले से गैस सिलेंडरों का उपयोग हो रहा है। छोटी गुमठियों से लेकर बड़ी होटलों व रेस्टारेट में सुरक्षा के संसाधनों के बिना यह कभी भी आफत बन सकती है। प्रशासन का इस ओर ध्यान तक नहीं है। जिम्मेदारों की अनदेखी की वजह से फ्यूल के
तौर पर वाहनों में भी इसकी रिफलिंग मनमाने ढंग से किया जा रहा है।

 


उल्लेखनीय है कि हाल ही में शहर मे आए दिन आग लगने की सूचना मिलती रहती है।कभी किसी दुकान मे तो कभी किसी गोदाम मे आग की वजह से बड़ी दुर्घटना सामने आई है।अन्य विभागों की सुस्ती दर्शा रही है कि अपने काम के प्रति वे कितनी सजगता से काम कर रहे हैं।


सुलग रही भट्टी
गैस सिलेंडरों का मानक के आधार पर उपयोग हो रहा है कि नहीं यह काम आपूर्ति अधिकारी कार्यालय का है। इस संबंध में विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किए जाने से घरेलू गैस सिलेंडरों का दुरुपयोग किया जा रहा है। वहीं सिलेंडर से भट्टी जलाने के मामले में जुगाड़ की वजह से भी कई बार छुटपुट घटनाएं होती हैं।

 

अधिकारियों की मिलीभगत
व्यावसायिक गैस सिलिंडर का कीमत 12 से 14 सौ रुपये के बीच है। लेकिन घर में प्रयोग किए जाने वाले घरेलू गैस सिलिंडर कालाबाजार में 800 से 900 रुपये है। होटल मालिक पैसे बचाने के लिए व्यावसायिक सिलेंडर के बदले घरेलू गैस सिलेंडर का उपयोग करते हैं। इन दुकानदारों पर प्रशासनिक पदाधिकारी की नजर पड़ती है, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। रसोई गैस की कालाबाजारी व रिफिलिंग का अवैध कारोबार अधिकारियों की मिलीभगत से हो रहा है।

 

होटलों की जांच से परहेज
होटलों में सफाई की बात हो या फिर खाद्य सामग्री की जांच यह कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। इसकी वजह से होटल संचालकों द्वारा धड़ल्ले से घरेलू गैस सिलेंडरों का उपयोग किया जाता है। विभागीय अधिकारियों की उदासीनता के कारण ही होटल व रेस्टोरेंट मालिक व्यवसायिक सिलेंडरों का उपयोग करना नहीं चाहते हैं।

 

कट रहा उपभोक्ता का हक
नियमों के मुताबिक हर वर्ष आम उपभोक्ता को सब्सिडी वाले 12 गैस सिलेंडर मिलते हैं, लेकिन तमाम उपभोक्ता पूरे साल में 12 गैस सिलेंडर खरीद नहीं पाते। गैस सिलिंडर उपभोक्ता नहीं उठाते। जानकारों के अनुसार उपभोक्ताओं के इसी हक पर एजेंसियों के एजेंट डाका डालते हैं। इसी सब्सिडी वाले सिलिंडरों की कालाबाजारी की जाती है। सूत्रों का कहना है कि सिलिंडरों में रिफिलिंग करने वाले दुकानदार एक बड़े सिलेंडर से सात सौ रुपये तक का मुनाफा कमाते हैं। अनुमान के अनुसार रोजाना 10 से 15 के करीब छोटे गैस सिलेंडर भरे जाते हैं। जिला मुख्यालय की मेन रोड पर ही कई ऐसी दुकानें हैं,जहां पर असुरक्षित तरीके से रिफिलिंग का काम धड़ल्ले से होता है। जबकि यहां अधिकांश समय आवाजाही, खरीदारी करने आने वाले लोगों की भीड़ लगी रहती है। आज तक इसे लेकर जांच नहीं हुई।

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