दिल्ली

फिर नेतृत्व क्यों नहीं कर सकते : पीके बिहार में कुर्मी से ज्यादा ब्राह्मण….

नई दिल्ली    जनसुराज के नेता और राजनैतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार की राजनीति को लेकर कहा कि नीतीश कुमार जिस कुर्सी जाति से आते हैं, उससे अधिक ब्राह्मणों की आबादी है। इसकारण यदि कुर्मी नेता नेतृत्व कर सकता है, तब बिहार में कोई ब्राह्मण क्यों नहीं कर सकता। उन्होंने खुद की ब्राह्मण पहचान को लेकर कहा कि आखिर संविधान में कहां लिखा है कि सवर्ण कोई राजनीतिक प्रयास नहीं कर सकता।

पीके ने कहा कि मैं जातिवादी राजनीति नहीं करता हूं, लेकिन कुछ लोग मेरे नाम में पांडेय ढूंढकर ला रहे हैं। पीके ने कहा, 18 फीसदी आबादी मुसलमानों की है और उनकी भूमिका भी अहम होगी। हम तय करते हैं कि दल के पदाधिकारियों में 18 प्रतिशत मुसलमान है। इसके अलावा टिकट पाने और पदों पर आने के मामले में भी उन्हें मौका मिलेगा।

पीके ने कहा कि 2 अक्टूबर को हमारा दल औपचारिक रूप लेगा। इसमें एक साथ 1 करोड़ लोग आएंगे। यह ऐसा पहली बार होगा, जब कोई पार्टी बनाने के लिए ही 1 करोड़ लोग आगे आएंगे। हम अलग-अलग वर्गों से बात कर रहे हैं। मुसलमानों के साथ बैठक की है। उन्होंने कहा कि हमारी मूलभावना है कि सभी को साथ लेकर दल बनाना है। वहीं बिहार में पीके ने आरजेडी के एमवाय समीकरण पर कहा कि यह अस्तित्व में नहीं है।

पीके ने कहा कि 2014 में 4 सांसद उनके बने और फिर 2019 में यह आंकड़ा जीरो पर रहा। फिर से 4 सीट ही उन्हें मिली है। अब तक मुसलमान वोट उन्हें देता रहा है, लेकिन इसकी वजह आरजेडी का काम नहीं है बल्कि भाजपा से डर है। मुसलमानों की बात करें तब दलितों के बाद सबसे बदहाल मुसलमान ही हैं। उन्हें दिख रहा है कि कुछ मिल नहीं रहा है। ना ही विकास हुआ और ना राजनीतिक भागीदारी मिल सकी है। हम उन्हें यह बताएंगे कि वह सिर्फ भाजपा के विरोध में वोट न दें बल्कि अपने बच्चों के भविष्य के लिहाज से आगे बढ़ें। पीके ने कहा कि ऐसा ही एक बड़ा वर्ग जो नीतीश कुमार या भाजपा को वोट देता है, वह लालू से डर वाला है। मैं मुसलमानों को बताता हूं कि आपने अब तक जिन रहनुमाओं को चुना है, उन्होंने आपके लिए क्या किया। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट 2006 में आई। तब ज्यादा दिन भाजपा का शासन नहीं था।

उस रिपोर्ट के आधार पर साफ है कि मुसलमानों ने जिन लोगों को वोट दिया था, उन्होंने उन्हें आगे नहीं बढ़ाया। पीके ने कहा कि जनसुराज पार्टी का नेता मैं नहीं रहूंगा। चुनावी रणनीतिकार रहे पीके ने कहा कि मैंने अपना सब कुछ इसके लिए दांव पर लगाया है। इस दौरान मैं बाहर नहीं निकला हूं। बिहार की स्थिति बदलने का पूरा खाका बनाकर आया हूं। उन्होंने कहा कि हमारा अभियान यह है कि आजादी से पहले ही कांग्रेस जैसा एक दल बनाया जाए। उस दौर में कांग्रेस का अध्यक्ष अधिवेशन में चुना जाता था और उनका कार्यकाल डेढ़ साल से ज्यादा का नहीं होता था। तब अनपढ़ लोगों की संख्या अधिक थी, लेकिन लोकतंत्र इतना अधिक था। फिर भी लोग अपने नेता का चुन लेते थे। क्या ऐसी स्थिति बिहार में नहीं हो सकती है। हम उसी को मॉडल मानकर आगे चल रहे हैं।

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