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ऑक्सीजन तेजी से हो रही है कम पानी में घुली

नईदिल्ली। नदी-नाले, झील-झरने और समुद्र के पानी में घुली हुई ऑक्सीजन तेजी से कम हो रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर ऐसा होता रहा तो दुनिया के जीवन पर ये बात सबसे बड़ा खतरा बन जाएगी। जिस तरह से वातावरण में ऑक्सीजन हमारे लिए ज़रूरी है। उसी तरह पानी में घुली ऑक्सीजन उससे स्वस्थ जलीय इकोलॉजी के लिए भी ज़रूरी है। चाहे वह मीठे पानी से जुड़ा जल निकाय हो या फिर समुद्र, इन दोनों से जीवन जुड़ा है। इसमें रहने वाले जीव-जंतु तब तक ही जिंदा हैं, जब कि इनके पानी में ऑक्सीजन घुली हुई है। जलीय जीव जंतुओं का जीवन हम सभी के लिए जरूरी है।पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा कई कारणों से कम हो जाती है।

उदाहरण के लिए गर्म पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा उतनी नहीं रह जाती। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण हवा और पानी का तापमान उनके दीर्घकालिक औसत से ऊपर बढ़ता रहता है, इस वजह से इसके अंदर की ऑक्सीजन भी कम हो रही है। सतही पानी ऑक्सीजन जैसे महत्वपूर्ण तत्व को बनाए रखने में कम सक्षम होता जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग से गर्म होता पानी और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन पानी से वो ऑक्सीजन खत्म कर रहा है, जो जल में रहने वाले जीव जंतुओं के लिए जीवनदायिनी है।इस ऑक्सीजन को खत्म करने में कृषि और घरेलू उर्वरकों, सीवेज और औद्योगिक कचरों का भी खासा योगदान है, जो जल में घुली हुई ऑक्सीजन को सोख ले रहे हैं। जब ऑक्सीजन कम होने लगती है तो सूक्ष्मजीवों का दम घुटने लगता है, वो मर जाते हैं। इसका असर देरसबेर बड़ी प्रजातियों पर भी पड़ता है।

सूक्ष्मजीवों की आबादी जो ऑक्सीजन पर निर्भर नहीं होती है, वे मृत कार्बनिक पदार्थों के भंडार पर पलती है, जिससे घनत्व इतना बढ़ जाता है कि प्रकाश कम हो जाता है और प्रकाश संश्लेषण भी बहुत सीमित हो जाता है, जिससे पूरा जल निकाय एक दुष्चक्र में फंस जाता है, इसे यूट्रोफिकेशन कहा जाता है। जलीय ऑक्सीजन की कमी पानी के तेजी से गर्म होने से हो रही है तो बर्फ के पिघलने से महासागरों में सतही लवणता में कमी आने से भी। हाल ही में कुछ साइंटिस्ट्स ने ऑक्सीजन की कमी पर चेताया है। स्वस्थ पानी में आमतौर पर घुली हुई ऑक्सीजन (डीओ) की सांद्रता 6.5-8 मिलीग्राम/लीटर से ऊपर होनी चाहिए। अधिकांश जलीय जीवों के जीवित रहने के लिए न्यूनतम 4 मिलीग्राम/लीटर ऑक्सीजन की जरूरत जरूरी है।

मछली के जिंदा रहने के लिए कम से कम 5 मिलीग्राम/लीटर की आवश्यकता होती है। ठंडे पानी में घुलित ऑक्सीजन का स्तर अधिक हो सकता है, जबकि गर्म पानी में ऑक्सीजन की घुलनशीलता कम होती है।दुनिया के जल निकायों में ऑक्सीजन की चिंताजनक कमी को डीऑक्सीजनेशन के रूप में भी देखा जा रहा है, जो जलीय पारिस्थितिकी तंत्र और मानव आजीविका के लिए खतरा है। इससे “मृत क्षेत्रों” का विस्तार होता है। मछली का जीवन तो इससे खतरे में आ ही रहा है साथ ही पानी की गुणवत्ता में भी व्यवधान डालता है। डीऑक्सीजनेशन से मछली, शेलफिश, मूंगा और अन्य समुद्री जीवों की बड़े पैमाने पर मृत्यु हो सकती है। ये ऑक्सीजन-रहित क्षेत्र, जिन्हें अक्सर “मृत क्षेत्र” कहा जाता है, संपूर्ण खाद्य जाल को बाधित करते हैं और प्रजातियों के वितरण में महत्वपूर्ण बदलाव का कारण बन सकते हैं।

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